एक आवारा हूँ मैं
फिक्र मेरी छोड़ दो कि एक आवारा हूँ मैं
तुम किसी सूरज को देखो टूटता तारा हूँ मैं'
मुफ्त में उनका हुआ मैं .तो भी ना अपना सके
वो भी क्या करते मैं जानूं कितना नाकारा हूँ मैं
प्यार जब इक बार उनसे कर लिया तो कर लिया
वो जरा मेरे ना हो पर उनका तो सारा हूँ मैं
अब किसी दिल में जगह न मिल सकी तो क्या हुआ
मुझको तो था ही भटकना क्यूंकि बंजारा हूँ मैं
वो ना थे ,खुशियाँ क्या करता, तो चुनी बरबादियाँ
और कुछ चारा नहीं था यार बेचारा हूँ मैं
मुझको मिल जाती है जब औरों की जीतों में ख़ुशी'
जीतकर मैं क्या करूँगा ,सोचकर हारा हूँ मैं ।
पंकज जैन "सुकून"
"दिल तो दिल है "पुस्तक से साभार
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