कितनी बार मेरी आँखों के आगे अँधेरा छाया ।
लगा कि अब कुछ नहीं बचा है जीने को ।
तभी चला आता है कोई चमकती आँखों में प्यार की रोशनी लेकर ।
कभी माँ ,कभी कोई बच्चा तो कभी कोई दोस्त ।
कितन सुकून मिलता है ?मन की सारी कालिख धुल जाती है । फिर से जीने की इच्छा होती है भरपूर जीने की ।
ओह !भगवान् !क्या ये तू है ?
तू ही है न ,जो हर बार रूप बदलकर आता है ।
हर बार एक नै आवाज़ में कुछ कहकर फिर भरोसा जगा देता है ।
मैं तेरी पूजा नहीं करता ।
सब मंदिर में जाते है ,तेरे आगे झुकते है,तेरा आदर करते हैं ।
लेकिन मै ............मैं प्यार करता हूँ तुझसे ।
और जबकि मैंने जाना है कि किसी इंसान की शक्ल में मेरे पास पहुंचता है
तो मैं प्यार करता हूँ इंसानों से ।
गहरा प्यार .......इतना कि खुद को भूल सकूँ ।
मैं जानता हूँ ना ,
मेरा प्यार तुझ तक पहुँच रहा है ।
पंकज जैन "सुकून"
"दिल तो दिल है "पुस्तक से साभार
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