बढ़ी कोशिश से चला हूँ।
बड़ी कोशिश से चला हूँ मगर यही डर है
फिर लिए आएगी मुझे कोई लहर तेरी तरफ
मैं न देखू तुझे ये कितनी देर मुमकिन है
कि जरा देर और ये मेरी नजर तेरी तरफ
मैं अपने आप को आठो पहर धकेलता हूँ
इक कशिश खिचती है शामो सहर तेरी तरफ
यार हर बार कही से किसी बहाने से
मुड़ ही जाती है हरेक रहगुजर तेरी तरफ
अक्ल कहती है किसी मंज़िल , किसी हासिल को चल
दिल ये कहता है जब भी पछु किधर ,तेरी तरफ
यही उलझन है कि मैं ना चलु तो जी न सकू
दुनिया नाराज़ है चलता हूँ अगर तेरी तरफ
BY PANKAJ JAIN@ ALL RIGHTS RESERVED
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