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किसको क्या कहूँ ?

किसको क्या कहूँ ? आते है दोनों ऐसे एक दूजे के भेष में किसको कहूँ मैं ख्वाब ,हकीकत कहूँ किसे ? ये सब न सोचूं और बस चलता चला जाऊ अक्लमंदी ये है तो फितरत कहूँ किसे ? फाके में जीता है वो,जिसमे खुददारी है नागवार जिसको मतलब की दुनियादारी है बर्बाद हो तो हो ,मगर बेईमान नहीं हो ये अगर कमजोरी है, ताक़त कहूँ किसे ? खुश रहके जी रहा है 'जो अपने हाल में उलझा नहीं अभी तक किसी भी सवाल में खुद से,खुदा से ,दुनिया से शिकवा नहीं कोई इसको मैं बौनापन कहू तो अजमत कहू किसे ? दूर से उनपे लिखना ,तस्वीरे  बनाना मजबूर मुफलिसी से पैसा नाम कमाना उनको तजुर्बों की कोई चीज़ समझना क्या ज़र्रा नवाजी है ,ज़िल्लत कहू किसे ? खुद का ईमान जाये,या किसीकी जान जाये भीड़ जितनी हो सके ,पीछे हमारे आये दोनों के तरीके ही इतने मिलते जुलते है मज़हब कहू किसे 'मैं सियासत कहू किसे ? देखो लबे आशिक पे  जरुरत का जिक्र है प्यार तो है लेकिन पहले अपनी फिक्र है रिश्तों में छोटे बड़े सौदों को देखकर सोचता हूँ आखिर मोहब्बत कहू किसे ? BY PANKAJ JAIN@ ALL RIGHTS RESERVED CALL TO ORDER BOOK,DVD"LOVE&q

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business of gods

खुदा का व्यापार मजहब की दुकाने है , खुदाओ का व्यापार है अब शहर में सबसे ज्यादा इनके इश्तिहार है  अब लबों पे वाइजों के ही इबादत न रही  कि जुंबा पे तोहमते है जहन में बाजार है  क्यु खुदा के रास्तो पे दुनिया वाली दौड़ है उसके बंदो को फरक क्या जीत है कि हार है के खुदा खामोशियो से , दे गए कुर्बानियाँ या तो तुम झूठे हो मियां या कि वो लाचार है भीड़ का न मजह्बो से, ना खुदा से वास्ता बस तमाशा देखने वालों की ये भरमार है उसको मंदिर में , मस्जिद कैद करना भूल है जर्रे जर्रे में है वो हमको कहां इनकार है साथ हो लो उसके या फिर लोगों को खुश कीजिए कि खुदा हमसे शुरू हमपे ख़तम सरकार है BY PANKAJ JAIN@ ALL RIGHTS RESERVED CALL TO ORDER BOOK,DVD"LOVE"  OR LYRICS 09754381469 09406826679  

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ULTIMATE TRUTH OF LIFE-ज़िन्दगी झांट

                         ज़िन्दगी झांट किसी जगह धीरे धीरे कुछ झांट के बाल उगने लगे । शुरू शुरू में तो कुछ ही थे , तो सब चुपचाप बढ़ रहे थे और अपने आस पास और ज्यादा के उगने का इंतज़ार कर रहे थे ।पहले तो अपनी गिनती बढते देख खूब खुश हुए । जहाँ देखो ,वहां बाल ही बाल। उससे आगे दिखता नहीं था । लगा कि यही दुनिया है और इसका खुदा तो मैं  भी बन सकता हूँ । किसी दिन गलती से शैम्पू की कुछ बुँदे कुछ बालों  पर टपक गयी ।वो जरा मुलायम मुलायम से हो गए । "कुछ तो खास है यार मुझमे । "ऐसा कईयों को लगने  लगा ।  वैसे बूंद तो कहीं भी ,किसी पे भी टपक सकती थी । जब वो खूब बढ़ गए ,तो एक दुसरे में उलझने लगे । एक बड़ा लम्बा बाल बोला" अबे, दूर हट साले ,अपनी औकांत देख ,नाख़ून भर का है नहीं, ऊँगली भर बाल से भिड़ने चला है " आजकल अपने को छोटा कौन समझता है ?छोटू ने दो चार नंगी गालियाँ चिपका दी । लम्बू के दिल पे लग गई।क्यूंकि बढ़ते बढ़ते ऊपर जाने की बजाय वो घूम फिर के फिर चमड़ी तक आने लगा था । उसको डर लगा। डरने पे कोई भी सोचने लगता है । जब लगे फटने ,प्रसाद लगे बंटने ।

GHAR- SWEET HOME

घर  मेरे ख्यालों में एक घर है  जहाँ नहीं दिवार ओ दर है  बेताबी से जिसमे मेरी  राह देखती इक नज़र है ।  जिसमे आँचल की छाया है  मेरे संग संग इक साया है , जिसमे तनहा शाम नहीं है' जिसमे हंसती हुई सेहर है।  जब भी टूट के मैं जाऊं  जग से रूठ के मैं जाऊं  और जब रोऊँ तो पाऊं  किसी गोद में मेरा सर है ।  कुछ कडवाहट जहाँ नहीं  कोई बनावट जहाँ नहीं   प्यार ही प्यार भरा है जिसमे नफरत जिस घर से बाहर है ।   FROM  "DIL TO DIL HAI"  बुक BY PANKAJ JAIN@ ALL RIGHTS RESERVED CALL TO ORDER BOOK,DVD"LOVE"  OR LYRICS 09754381469 09406826679